बिहार क्यों नहीं बन पा रहा विकसित राज्य? जानिए विकास रुकने के पीछे की असली वजहें

बिहार भारत का एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से समृद्ध राज्य है। यहां की धरती ने चाणक्य जैसे विद्वानों और बुद्ध जैसे संतों को जन्म दिया है। लेकिन जब भी भारत के विकसित राज्यों की बात होती है, तो बिहार का नाम पीछे रह जाता है। ये सवाल अक्सर उठता है कि जिस राज्य ने शिक्षा, राजनीति और विचारधारा में देश को दिशा दी, वह आज विकास की दौड़ में पीछे क्यों रह गया है।

इस सवाल का जवाब कोई एक कारण नहीं बल्कि कई गहरी और जमीनी सच्चाइयों में छिपा है। गरीबी, बेरोजगारी, राजनीति, संसाधनों की कमी और प्रशासनिक ढिलाई जैसे अनेक कारक बिहार के विकास की रफ्तार को धीमा करते रहे हैं। आइए, विस्तार से समझते हैं कि बिहार का ग्रोथ क्यों रुक गया और यह राज्य आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहा।

राजनीतिक अस्थिरता और योजनाओं की असफलता

बिहार में लंबे समय तक राजनीतिक अस्थिरता बनी रही है। कभी गठबंधन सरकारें तो कभी बार-बार बदलती नीतियों के कारण यहां पर विकास योजनाओं का स्थायी रूप से लागू हो पाना मुश्किल रहा है। जब भी कोई नई सरकार आती है, वह पुरानी सरकार की योजनाओं को बंद कर देती है या उनमें बड़े बदलाव कर देती है, जिससे ग्रोथ की प्रक्रिया रुक जाती है। यह राजनीतिक अस्थिरता निवेशकों और कंपनियों को भी यहां आने से रोकती है, जिससे आर्थिक गतिविधियां सीमित रह जाती हैं।

बिहार
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उद्योगों की भारी कमी और बेरोजगारी

बिहार में बहुत कम औद्योगिक विकास हुआ है। राज्य में न तो बड़े-बड़े कारखाने हैं और न ही आईटी पार्क या मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स। यही कारण है कि यहां के लोगोंओं को रोजगार के लिए दिल्ली, मुंबई, गुजरात या पंजाब जैसे राज्यों की ओर पलायन करना पड़ता है। जब राज्य में ही अवसर नहीं मिलते तो प्रतिभाएं बाहर चली जाती हैं और राज्य खाली रह जाता है। इसका सीधा असर राज्य की अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास पर पड़ता है।

शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त कमज़ोरियाँ

बिहार भले ही IAS देने में आगे हो, लेकिन सामान्य शिक्षा व्यवस्था अब भी संघर्ष कर रही है। सरकारी स्कूलों में आधारभूत सुविधाओं की कमी, शिक्षकों की अनुपस्थिति और पाठ्यक्रम की क्वालिटी जैसे मुद्दे बच्चों की शिक्षा में रुकावट पैदा करते हैं। उच्च शिक्षा में भी संसाधनों और लेटेस्ट संस्थानों की भारी कमी है। ऐसे में एक बड़ा वर्ग अच्छा शिक्षण पाने से वंचित रह जाता है और राज्य का मानव संसाधन पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता।

बुनियादी ढांचे की कमजोर स्थिति

बिहार की सड़कों, पुलों, रेलवे और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं की स्थिति अन्य राज्यों के मुकाबले काफी पीछे है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पक्की सड़कें नहीं हैं। बरसात में कई गांवों का संपर्क टूट जाता है। बिजली की आपूर्ति भी अस्थिर है, जिससे औद्योगिक विकास और व्यवसाय पर असर पड़ता है। जब इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत नहीं होगा तो कोई भी बड़ा निवेशक यहां कारोबार शुरू करने की सोच भी नहीं सकता।

प्राकृतिक आपदाओं का बार-बार आना

बिहार एक ऐसा राज्य है जो हर साल बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होता है। खासकर उत्तर बिहार में गंडक, बागमती और कोसी नदियों की वजह से हर साल लाखों लोग बाढ़ की चपेट में आते हैं। इससे खेती, घर, सड़कें और स्कूल तक बर्बाद हो जाते हैं। सरकार को बार-बार पुनर्निर्माण और राहत कार्यों में धन लगाना पड़ता है, जिससे दीर्घकालिक विकास पर असर पड़ता है। प्राकृतिक आपदाएं यहां की अर्थव्यवस्था को बार-बार पीछे खींच देती हैं।

पलायन और ब्रेन ड्रेन की गंभीर समस्या

बिहार की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है पलायन। यहां के लाखों लोगों रोजगार, शिक्षा और बेहतर जीवन की खोज में दूसरे राज्यों या विदेश चले जाते हैं। यह ब्रेन ड्रेन राज्य की ताकत को कमजोर कर देता है। जो लोग बाहर सफल होते हैं, वे भी अपने राज्य में निवेश करने या कुछ नया शुरू करने से डरते हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं होता कि यहां का सिस्टम उन्हें सपोर्ट करेगा। इससे राज्य की आंतरिक क्षमता का सही उपयोग नहीं हो पाता।

कृषि पर अत्यधिक निर्भरता लेकिन लेटेस्टता का अभाव

बिहार की अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर है, लेकिन खेती के तरीके आज भी पारंपरिक हैं। सिंचाई की सुविधा सीमित है, बीज और खाद की क्वालिटी भी अक्सर खराब होती है। फसल के बाद मंडी और बिक्री की व्यवस्था भी असंगठित है। किसान को उसकी उपज का सही दाम नहीं मिलता, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर रहती है। कृषि क्षेत्र को अगर तकनीक और लेटेस्टता से नहीं जोड़ा गया, तो बिहार का गांव और किसान कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे।

सामाजिक ढांचे में असमानता और जातीय राजनीति

बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण का बहुत बड़ा रोल होता है। विकास की बजाय जाति आधारित वोटबैंक की राजनीति ने यहां की नीतियों को प्रभावित किया है। सरकारें विकास की जगह समाज को बांटने वाली रणनीतियों पर अधिक ध्यान देती हैं। इससे ना सिर्फ सामाजिक विभाजन बढ़ता है, बल्कि विकास के लिए जरूरी सामूहिक सोच भी गायब हो जाती है। अगर समाज एकजुट होकर आगे नहीं बढ़ेगा, तो राज्य का ग्रोथ हमेशा रुका रहेगा।

निवेश और निजी क्षेत्र की भागीदारी की कमी

बिहार में निवेश करने वाले उद्योगपतियों की संख्या बहुत कम है। इसकी वजह है कानून व्यवस्था की स्थिति, अफसरशाही और प्रशासन की धीमी प्रक्रिया। कई बार परियोजनाएं फाइलों में ही अटक जाती हैं और निवेशक पीछे हट जाते हैं। अगर निजी क्षेत्र को सही माहौल, सुरक्षा और सुविधाएं दी जाएं तो वे यहां आकर व्यापार शुरू कर सकते हैं, जिससे रोजगार बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।

बदलाव की दिशा में उठाए गए कुछ कदम

हाल के वर्षों में सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं जैसे सड़क निर्माण, ग्रामीण विद्युतीकरण, स्किल डेवलपमेंट मिशन और महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम। ये प्रयास सराहनीय हैं लेकिन इनका असर तभी होगा जब उन्हें ईमानदारी से लागू किया जाए। साथ ही, शिक्षा, स्वास्थ्य और इंफ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता दी जाए, तो बिहार की तस्वीर जरूर बदलेगी।

अगर सही दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं, राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, और समाज मिलकर काम करे, तो बिहार भी विकास की उस राह पर चल सकता है, जहां उसके पास अपार संभावनाएं मौजूद हैं। बिहार के पास इतिहास भी है, संस्कृति भी, मेहनतकश लोग भी, बस ज़रूरत है इन ताकतों को एकजुट करके सही दिशा में ले जाने की।

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