Nalanda University का इतिहास क्या है? जानिए पूरी जानकारी विस्तार से

Nalanda University: भारत की ऐतिहासिक धरोहरों में नालंदा विश्वविद्यालय का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। यह केवल एक विश्वविद्यालय ही नहीं बल्कि प्राचीन काल में ज्ञान, संस्कृति और दर्शन का एक महान केंद्र था। नालंदा का इतिहास भारतीय शिक्षा प्रणाली की परंपरा को दर्शाता है। यह विश्वविद्यालय उस दौर में स्थापित हुआ था.

जब दुनिया के बाकी हिस्सों में शिक्षा की बुनियादी सोच भी विकसित नहीं हुई थी। नालंदा न सिर्फ भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी ग्यान और वैदिक ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। आइए जानते हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कब और कैसे हुई, इसका विकास कैसे हुआ और इसे किस कारणवश नष्ट कर दिया गया।

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कब और कैसे हुई

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त प्रथम द्वारा की गई थी। यह वर्तमान बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार नालंदा की नींव करीब 427 ईस्वी के आसपास रखी गई थी। उस समय यह स्थान बौद्ध धर्म के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल हुआ करता था। बुद्ध के इस स्थान को आध्यात्मिक ज्ञान का केंद्र मानते थे। नालंदा का अर्थ होता है “ज्ञान देने वाला”, जो इस विश्वविद्यालय के उद्देश्य को भी दर्शाता है।

Nalanda University
Nalanda University

नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा का स्वरूप और विषय

नालंदा विश्वविद्यालय एक बहुत बड़ा शिक्षा का संस्थान था, जिसमें हजारों विद्यार्थी और सैकड़ों शिक्षक रहते थे। कहा जाता है कि यहां करीब 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक एक साथ शिक्षा ग्रहण करते थे। इस विश्वविद्यालय में प्रवेश लेना आसान नहीं था। विद्यार्थियों को कठोर परीक्षा पास करनी होती थी और तभी उन्हें यहां पढ़ाई की अनुमति मिलती थी। यहां पर मुख्य रूप से बौद्ध धर्म, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, गणित, ज्योतिष, व्याकरण, दर्शन और साहित्य जैसे विषय पढ़ाए जाते थे।

यहां की शिक्षा प्रणाली बेहद व्यवस्थित और अनुशासित थी। विश्वविद्यालय में कई पुस्तकालय थे, जिनमें हजारों ग्रंथ और पांडुलिपियां संग्रहित थीं। सबसे प्रसिद्ध पुस्तकालय “धर्मगंज” था, जो नौ मंज़िला था और उसमें अनेक दुर्लभ पांडुलिपियां रखी गई थीं।

नालंदा विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा

नालंदा विश्वविद्यालय की बात भारत तक सीमित नहीं थी। चीन, तिब्बत, जापान, कोरिया और श्रीलंका जैसे देशों से भी विद्यार्थी यहां पढ़ने आते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग ने भी नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और बाद में अपने ग्रंथों में इसका विस्तार से वर्णन किया। ह्वेनसांग ने अपने यात्रा डिटेल्स में नालंदा को शिक्षा, संस्कृति और बौद्ध दर्शन का सबसे बड़ा केंद्र बताया है।

यह विश्वविद्यालय न केवल धार्मिक शिक्षा का केंद्र था बल्कि सांस्कृतिक समावेश का उदाहरण भी था। यहां बौद्ध धर्म के अलग अलग मतों के साथ-साथ ब्राह्मण और जैन धर्म को भी शिक्षा दी जाती थी। यह उस समय का एक ऐसा विश्वविद्यालय था जहां ज्ञान का आदान-प्रदान न सिर्फ शास्त्रों में बल्कि डेली रुटीन में भी दिखता था।

नालंदा विश्वविद्यालय विनाश

इतिहासकारों के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय का विनाश 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। इसका प्रमुख कारण तुर्क आक्रमण था, जिसमें बख्तियार खिलजी नामक आक्रमणकारी ने इस विश्वविद्यालय पर हमला किया। उसने विश्वविद्यालय की इमारतों को नष्ट कर दिया और पुस्तकालयों को आग के हवाले कर दिया। कहा जाता है कि पुस्तकालयों में इतनी सारी किताबें थीं कि वह कई महीनों तक जलती रहीं। नालंदा का यह विनाश भारत की शिक्षा और संस्कृति के लिए बहुत बड़ी नुकसान थी।

इसके बाद नालंदा विश्वविद्यालय का अस्तित्व समाप्त हो गया और यह जगह सदियों तक खंडहर बनी रही। हालांकि, इसके खंडहर आज भी बिहार के नालंदा जिले में मौजूद हैं और इसे यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा भी प्राप्त है।

आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार

21वीं शताब्दी में भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से स्थापित करने की दिशा में पहल की गई। 2010 में संसद द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया, जिसके तहत विश्वविद्यालय को फिर से शुरू किया गया। इसका उद्घाटन 2014 में किया गया और यह अब राजगीर के पास स्थित है।

आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान है जिसमें कई देशों के छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यहां विभिन्न विषयों में पीजी और रिसर्च प्रोग्राम्स चलाए जा रहे हैं और इसका उद्देश्य नालंदा की ऐतिहासिक परंपरा को लेटेस्ट संदर्भ में आगे बढ़ाना है।

नालंदा विश्वविद्यालय भारत के ग्यान और सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक है। यह विश्वविद्यालय हमें यह बताता है कि प्राचीन भारत शिक्षा और ज्ञान में कितनी ऊंचाइयों तक पहुंचा हुआ था। नालंदा सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं था बल्कि वह एक ऐसी जगह थी जहां विचारों का मंथन होता था, जहां धर्म, विज्ञान और दर्शन को बराबर महत्व मिलता था।

इसका दोबारा निर्मान न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए शिक्षा और संस्कृति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। नालंदा का इतिहास आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है और यह दिखाता है कि भारत सदियों से ज्ञान की धरती रहा है। 

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